आदिकाल का नामकरण
आदिकाल का नामकरण
हिन्दी साहित्येतिहास लेखन में आदिकाल का नामकरण एक विवाद का विषय रहा है। इसके नामकरण और काल विभाजन को लेकर विद्वानों में मतभेद है। विद्वानों ने आदिकाल को आलग-अलग नामों से पुकारा है। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने इस “वीरगाथा काल” कहा है, मिश्र बन्धुओं ने “प्रारम्भिक काल” वहीं डॉ. रामकुमार वर्मा ने इसे “संधि एवं चारण काल” नाम से पुकारा है। अधिकतर विद्वानों के विचारों का अध्ययन करने के बाद “आदिकाल” नामकरण ही उपयुक्त ठहरता है। केवल आदिकाल के नामकरण को लेकर ही विद्वानों में मतभेद नहीं है, आदिकाल की समय सीमा को लेकर भी विद्वानों में मतभेद हैं। जार्ज ग्रियर्सन ने संवत् 700 से 1444, आचार्य रामचन्द्र शुक्ल संवत् 1050 से 1375 अथवा आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी ने 1000 ई. से 1400 ई. तक के समय को हिन्दी साहित्य का आदिकाल माना है। अधिकतर विद्वानों के विचारों का अध्ययन करने के बाद 10वीं से 14वीं शताब्दी के के बीच रचित रचनाओं और रचनाकारों के सम्पूर्ण हिन्दी साहित्य को हिन्दी साहित्य का आदिकाल कहा जा सकता है।