अँधा क्या जाने बसंत की बहार
अँधा क्या जाने बसंत की बहार
अँधा क्या जाने बसंत की बहार का अर्थ – जिस मनुष्य ने किसी वस्तु को देखा ही नहीं वह उसके महत्व को नहीं जानता।
वाक्य में प्रयोग – 1. तुम किसकी बात कर रहे हो उसके लिए तो शिक्षा बेकार है और वैसे भी तुमने वह कहावत नहीं सुनी अँधा क्या जाने बसंत की बहार।
2. उसके सामने इस बात का कोई महत्त्व नहीं है, अँधा क्या जाने बसंत की बहार।
अँधा क्या जाने बसंत की बहार
अंडे होंगे तो बच्चे बहुत होंगे
अंधा बांटे रेवड़ी फिर फिर अपने को दे
अंधे को अँधेरे में बड़ी दूर की सूझी
अपनी गली में कुत्ता भी शेर होता है
अपने पैरों पर आप कुल्हाड़ी मारना
अब पछताये होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत
अभी तो तुम्हारे दूध के दांत भी नहीं टूटे
आम खाने से काम या पेड़ गिनने से काम
इस कान से सुनना उस कान से निकाल देना
उखली में सिर दिया तो मूसल का क्या डर
एक म्यान में दो तलवारें नहीं रहती
कमान से निकला तीर और मुंह से निकली बात वापस नहीं आती
काठ की हाँडी आँच पर बार बार नहीं चढ़ती
काम का ना काज का दुश्मन अनाज का
कुत्ते की दुम बारह वर्ष नली में रखी तब भी टेड़ी की टेड़ी
कुत्ते को देशी घी हजम नहीं होता
कुम्हार अपने घड़े को कच्चा नहीं कहता
खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदलता है